Tuesday 16 June 2020

तनाव को दूर करने के 13 टिप्स

१. समय से सोए, समय से जगे, यदि आप वर्किंग प्रोफेशनल है तो 8 घंटे जरूर से अच्छी साउंड स्लीप ले ।।

२. मेडिटेशन जरूर करे, यदि आपको नींद नहीं आती है, स्लीपिंग डिस्टर्बेंस है तो जब आप बेड पर जाय, उससे पहले अच्छी तरह से हाथ मुंह धोए, पैरों को धोएं ।।

३. 5 मिनट भगवान का ध्यान करे, साथ ही कल की प्लानिंग जरूर करे, इससे आप कल को लेकर के फोकस्ड रहेंगे ।।

४  जब आप बेड पर सोने जाय, मेडिटेशन संगीत (music) जरूर लगाएं ,धीमी आवाज में इससे आप पाएंगे अलग ही दुनिया में धीरे धीरे आप जाएंगे साथ जल्दी और अच्छी नींद आएगी।।

५.सुबह या शाम जब भी आपको टाइम मिले आप २० मिनट थोड़ा वॉक जरूर करे।।

६.अपनी दैनिक क्रिया को अपनी डायरी में लिखने का प्रयास करे, यदि संभव हो तो डेली नहीं तो साप्ताहिक जरूर।।

७.कुछ दिन के लिए जहां आप रह रहे है, उस जगह से एक वीक का छुट्टी ले साथ ही किसी अच्छे जगह जाएं , जहां भी आपको पसंद हो ,घूम के आए, हो सकता है आपको पहाड़ , झड़ना , प्रकृति, समुन्द्र पसंद हो, जहां भी जाना पसंद थोड़ा टाइम अपने को दे, अपनों को दे , परिवार के साथ घूमने निकले।।

८. यदि आप किसी अवसाद से ग्रसित है तो मनोरोग चिकित्सक से जरूर मिले , और सिर्फ उन्हें फॉलो करे, इसका एक फायदा होगा क्यों की जो दवाइयां वो देंगे , वो केमिकल हमारे शरीर में मस्तिष्क में घुलेगा और धीरे धीरे हम अच्छा महसूस करेंगे कभी कभी ऐसा होता है जब हमारे मस्तिष्क में शरीर में किसी केमिकल का कम होना पाया जाता है या कम रिलीज होता है, उस वक़्त हमें मेडिकल साइंस के ऊपर भरोसा जरूर करना चाहिए साथ ही जो मैंने टिप्स दिए उसे भी फॉलो करें।

९  अपने परिवार वालों के संपर्क में जरूर रहे , बात करे, लोग कहते है आंसुओ में वजन काफी होता है, मन करे तो रोए, मन करे तो हंसे इससे आपके मन के अंदर के विकार बाहर आएंगे और आप अच्छा महसूस करेंगे।।

१०. मुस्कुराना सीखे , धीरे धीरे आपको इसकी आदत पड़ जाएगी, जो चीज़े आपकी जरूरत की ना हो उसे इग्नोर करे ।।

११. अपनी एक क्रमबद्ध तरीके से रूटीन बनाए, सुबह से शाम तक की और उसे अनुशासित ढंग से फॉलो करे, इससे आप का ध्यान भटकेगा नहीं।।

१२. सोशल मीडिया से कुछ समय के लिए दूर हो जाय और अपने आप को घूमने में, कुछ करने में व्यस्त रखे।।

१३. और अंत में अपने पर और जो आपके अपने है, उन पर विश्वास जरूर करे, इससे आप कॉन्फिडेंट रहेंगे ।।

Wednesday 3 June 2020

एक आस ..।।

वो सुबह कभी तो आएगी, वो सुबह कभी तो आएगी,
जब हम बंद घरों से होंगे बाहर, वहीं चहल कदमी  फिर सुन आएगी।

फिर सभी स्वतंत्र हो घूमेंगे , ना कोई फिकर ना कोई चिंता होगी,
वो सुबह कभी तो आएगी, वो सुबह कभी तो आएगी।।

यूं तो इस कदर घरों में बैठना , अच्छा है प्रकृति के लिए ,
आवो हवा भी हो रही साफ , स्वच्छंद नदियों के लिए।

पर उनका क्या  ? जो हम पर ही निर्भर होते  रोजी रोटी के लिए,
हम यहां हो रहे खुश,और कहते -  चलो अच्छा है, अपनों के लिए।।

और "वो"  इसलिए चिंतित हैं, कि एक और दिन ना गुजर जाए भूख के मारे।
हां वो दिन ही तो गुज़ार रहे इस आश में की चल कर पहुंच पाए अपनों तक मारे - मारे।।

हां साब ।। जिस मजदूर ने इतने बड़े बड़े शहर बसा दिए , वो आज मजबूर हो गए,
हो गए वो "मजबूर" इस शहर को छोड़ने को, जिसे वो अपना मान बैठा था।

आज "हालात ए मजबूरी "ना होती तो यूं इस कदर यहां वहां ठोकरें ना खाते।
यूं ,इस कदर इनकी मौतें ना होती,उसी सड़क पर जिसे इसने खुद बनाया था।।

हे ईश्वर अब अपनी क्रोध की अग्नि को करो शांत, हम अबोध अब खड़े है सामने जोड़े दोनों  हाथ।।

एक आस के साथ ... कि वो सुबह जल्द ही आएगी , वो सुबह जल्द ही आएगी।।

धन्यवाद्,
आनंद

Sunday 26 April 2020

कोरोना युग में बैंगलोर।।

यूं तो मै इतनी सुबह कभी उठता नहीं, चलो आज आप लोगो को इस कोरोना युग ( जी हां हम इसे कोरोना युग कह सकते है, ये एक ऐसी वैश्विक महामारी है जिसने विश्व के कई देशों को अपना शिकार बना लिया)
                 यूं तो बैंगलोर में कभी पहले ना हमने इतनी शुद्घ हवा में सांस ली और ना ही रातों के वक़्त कभी गगन में टिमटिमाते तारों को एक टक देखा , हां हमने यहां लगभग एक दशक अब पूरा कर लिया है, हमने बैंगलोर को इस कदर इंन एक दशक में बदलते देखा है ,मानो हम और हमारे जैसे व्यक्ति जो अपनी स्वार्थ वश इस शहर को नष्ट करने में अपना योगदान दिया हो।। बैंगलोर आज दूसरे महानगर की भांति अपने को उस गति से अग्रसित कर रहा है, चाहे बड़े बड़े अपार्टमेंट हो ( क्यों ना हम पेड़ पौधों को जंगलों को उपजाऊ जमीन को हटा कर बनाया हो) , सड़के, मार्केट, हर चीज यहां तीव्र गति से बढ़ी है।
       मुझे समझ नहीं आता इस कोरोना युग में प्रकृति का धन्यवाद करूं, या परम पिता परमेश्वर का शुक्रिया अदा करूं, जिन्होंने हम मानव को जब बनाया होगा ,उन्होंने भी कभी ऐसा सोचा ना होगा कि हम मानव अपनी स्वार्थ वश प्रकृति को नष्ट करने पर उतारू हो जाएंगे, कहीं ना कहीं ईश्वर जानते है, की उन्हे ये श्रृष्टि कैसे चलानी है, आज हम मानव पशु की भांति बंद कमरों में इस कदर बैठे है जैसा हमने कभी अपने पशु को अंदर जंजीरों में बांधा था, वहां हमने अपने पशुओं को अपने शौख के लिए बंद किया और यहां हम मौत के डर से अपने को घरों में बंद को मजबूर है।।
जब जब इस संसार में मानव अपने कर्मो की पराकाष्ठा को पार करके एक अलग दुनिया बसाने की कोशिश करेगा ,प्रकृति मानव को अपना शक्ति जरूर दिखाएगी, क्योकी प्रकृति से बलवान कोई भी नहीं।।
अब इस कोरोना युग में कुछ सकारात्मक पहलू की तरफ नजर दौड़ाते है,

हां हमें आज सुबह पक्षियों की कलरव करती आवाजे सुनाई दी , मानो एक स्वर में गाने की कोशिश कर रही हो,

हां हमने अपने व्यस्त समय में से अधिकाश अपने परिवार के साथ बिताया , मानों सब की आंखों में एक उम्मीद हो

हां हमने जीवन को एक सादगी के साथ जीना सीख लिया
मानो की इससे अच्छा समय कभी नहीं हो सकता

हां अब हम घरों में बंद है, नदिया स्वच्छ सी हो गई
हां होती भी क्यों ना अब प्रदूषण जो कम है।
हां अब पक्षिया एक स्वर में गा रही, तितलियां भी इतरा रही
हां गाए और इतराए भी क्यूं ना , अब हम जो बाहर ना है।।

अब इस कोरोना युग को क्या कहूं बस जो हो रहा है , प्रकृति की मंजूरी ही होगी।।





धन्यवाद्,
आनंद


Tuesday 13 February 2018

"तुम्हारे साथ "

आज बहुत दिनों के बाद दिल किया कुछ लिखने कोयूँ तो प्यार की कोई भाषा नहीं होती है फिर भी इन्हे शब्दों का रूप देने की जुर्रत कर रहा हूँ...!! ये चंद पंक्तियाँ समर्पित है उस शख्श के लिये जो मेरी अर्धांगिनी है...!!


मेरी हर धड़कनों में तुम ही हो, जीवन की संगीत भी तो तुम ही हो ..
लड़ना -झगरना,  बातों-बातों में चुप हो जाना,पर इन सभी का हक़दार भी तो तुम ही हो ...!!
.


सुबह की पहली किरण देखना पसंद है, मुझे सिर्फ तुम्हारे साथ,
चाय की चुस्की के साथ "सुर्र -सुर्र "की आवाज़ करना पसंद है, मुझे सिर्फ तुम्हारे साथ...!!
अभी तो बहुत दूर तलक जाना है हमें सिर्फ तुम्हारे साथ,
अभी तो जिंदगी को और करीब से देखना है सिर्फ तुम्हारे साथ...!!
क्यों की ये साथ अच्छा लगता है "जान", सिर्फ तुम्हारे साथ,
किस तरह से अदा करूँ शुक्र तेरा, बस ये साथ हमेशा बना रहे सिर्फ "तुम्हारे" साथ,
लो आज हक़ से कहता हूँ, एक बार नहीं बार-बार है प्यार हमें सिर्फ तुम्हारे साथ ...!!


तुम्हारा,

आनंद 

Friday 25 December 2015

अपनी पहली मुलाक़ात ..!!

वो हमारी पहली मुलाक़ात , हमें आज भी याद है,
तेरा वो बचपना , तेरा वो बात बात में डांटना ..!!
वो तेरा मेरे बगल में आके बैठ जाना फिर वो तेरा आहें भरना ..!
मेरे करीब आके फिर तेरा दूर जाना , मुझे छेड़ के बदमाशियां करना ..!!
वो तेरा अपने लबों को मेरे लबों के पास की शरारत ..!
फिर मेरे तेरे लबों को चूमने की वो नजाकत ....!!
वो मेरा तेरी गोद में सिर रख के तुझे घूरना ..!
फिर बार बार नजरे मिलाके नजरों को झुकाना....!!
फिर एक दूसरे को टकटकी लगाके देख के मुस्कुराना ..!
फिर एक दूसरे को बाँहों में लेकर लम्बी साँसे भरना ...!!.
एक दूसरे में इस कदर खो जाना की क्या कहेगा जमाना...!
मुझे अभी तक याद है वो हमारी पहली मुलाक़ात का छोटा सा नजराना...!!

आपका,
आनंद 


Sunday 16 August 2015

एक सुखद यात्रा पूर्णिया से बैंगलोर तक की...!!

बात उन दिनों की है  जब हम छुट्टियों में अपने घर पूर्णिया आये हुए थे , छुट्टियां ख़त्म हुई और हम घर से वापस बैंगलोर को रहे थे..मार्च का महीना था ..थोड़ी गर्मी पड़ने को थी, पसीने में लथ-पथ थे..गाडी अपने समय से पहले स्टेशन पहुंच चुकी थी ..हम अपने पापा के साथ थे जो हमें छोड़ने को स्टेशन तक आये हुए थे,,.कुछ देर पापा हमारे साथ हमारी बगल वाली सीट पर बैठे , फिर गाडी ने हॉर्न (सिटी ) दी ..उसके बाद मैंने पापा को प्रणाम किया और उनसे इज़ाज़त मांगी की जल्द ही फिर वापस आऊंगा इस बार और थोड़े दिन हाथ में रखूँगा

इतने
में एक लड़की यही कोई २३-२४ साल उमर रही होगी हांफती हुई ..अपने दुप्पटे से चेहरे को पोछती हुई  हमारे कोच के दरवाजे के पास खड़ी थी शायद उसे भी उसी ट्रैन से सफर करना था..पर वो सामान लेकर दरवाजे पे क्यों खड़ी थी ये मेरी समझ से परे था ..कुछ देर रुक कर जो मन के अंदर सवाल उठ रहे थे हमने आखिर पूछ ही लिया  आप यहाँ क्यों खड़े हो? कुछ देर में गाडी रवाना हो जाएगी जल्दी से ऊपर आ जाओ ,,फिर वो बोली : मै अपने भाई और माँ का इंतज़ार कर रही हू जो के साथ में आये हैं.मैं थोड़ी आगे आ गयी और ये भी डर था की ट्रैन निकल न जाय  .एक बैग उनके साथ है..कुछ देर बाद उनके भाई और उनकी माँ आयी और उन्हें दूसरा बैग थमा कर उसे विदा करी ( अमूमन ये हमारे संस्कार में है की विदा लेते समय हम अपने बड़ो को प्रणाम और छोटे को गले से लगाते हैं और नम आखों से अगली बार का भरोसा दिलाते हैं )  फिर कुछ देर में वो ट्रैन में चढ़ी जो बस प्लेटफॉर्म से चलने को ही थी ।। हम अपने शहर को अपनी भीगी आखों से ये कहने की कोशिश कर रहे थे अपनों को विदा करना , अपनों से दूर सिर्फ रोजी रोटी के लिए जाना कितना कष्टकारी होता है) संजोग से उसकी सीट मेरे ही बगल में थी ( लो भैया अब सुनिए आगे )... सन्नाटा सा पसरा था।  ..क्यों की कम्पार्टमेंट में जो की ८ सीट्स थी उसमे सिर्फ एक लड़की..शायद वो लड़की भी यही सोच रही थी कहा आकर फस गयी,,चुपके से फ़ोन निकाली अपनी बैग से और  अपने दोस्त को मैसेज में बता रही थी ( ऐसा मै सोच रहा था )..इट्स बोरिंग यार. ऑल आर गाइस ओनली...हाहा....!!





फिर कुछ देर बाद टीटी महोदय आए .एकदम्मे धुत्त काले कोट धारण किये और दिए लम्बा लबा बखान अपने एकदम सुच्चा बिहारी स्टाइल में  हमारे टाइम ऐसा और आज के टाइम में ऐसा, मानो उनकी वाणी को विराम देने को सोच सभी लोग रहे थे , किन्तु ८ लोग में कोई नहीं था जो उनके ऊपर चुटकी ले सके, फिर मुझसे रहा ना गया, चुटकी लेना कहां क्या बोलना ये तो अपनी प्रकृति रही है,,सो हमने चुटकी ली और सभी हंस पड़े ( कुछ इस अंदाज़ में अरे कहाँ सर... का बात कर रहे है हमरे यहाँ तो ऐसा होता है )..फिर धीरे धीरे सभी लोग एक दूसरे से जान पहचान बढ़ाने कि कोशिश करने लगे ( ये हमारे यहाँ का स्वभाव है यदि हमलोग कही यात्रा करते है तो आस पास कौन बैठा है कौन कहा जा रहा है जरूर पूछते है इससे अपनापन बढ़ जाता है )..फिर शीत वाक्य युध्ह छिड़ा पूर्णिया और कटिहार के बीच कौन बेहतर किस दृष्टिकोण से ( एकदम अखाडा के माफिक ), हम पूर्णिया वाले चाहे कैसे भी हो जब बात हमारी शहर की होती है XYZ कुछ भी प्रूफ करके अपने जगह को आगे कर ही देते हैं ( ऐसे ये तो हुई मज़ाक की बात हमारा पूर्णिया २५० साल लगभग पुराना है और इसका इतिहास बस आप इस अंदाज़ में लगा सकते है जहां के फणीश्वर नाथ रेणु जी थे जिनकी मैला आँचल उपन्यास पर "तीसरी कसम" सिनेमा बनी) हुआ भी यो ही,,फाइनली जहां के भी लोग थे पूर्णिया को श्रेष्ठ मानने में कतराएं नहीं,.. हमारे बीच एक अनोखे भाई साब थे जो की एयरफोर्स में कार्यरत थे , बेचारे बिहार पब्लिक सर्विस कमीशन का एग्जाम देने आये थे ..चार दिनों से सिर्फ ट्रैन से ही यात्रा कर रहे थे क्यों की लगातार २ एग्जाम और आना जाना अनवरत ( ये कोई हमारे फौजी भाई ही कर सकते है उस पर से जो बिहार से हो जब तक अपने लक्ष्य तक न पहुंच जाय तब तक संघर्ष एकदम मांझी टाइप "जब तक तोड़ेंगे नहीं तब तक छोड़ेंगे नहीं " ) ..हम रख दिए उनका नाम "कलाकार" ..स्वाभाव के बड़े ही नम्र व्यक्ति.थे .हम लोग चाहे कुछ भी बोल देते पर उनको तनिक भी बुरा नहीं लगता था,,,।। एक भाई जी और थे बगल वाली सीट पर जिनका नाम ध्यान में तो नहीं है.पर इतना याद है उनको भुवनेश्वर उतारना था..उनसे थोड़ी बात हुई थी वो केरल के किसी बीच का जिक्र कर रहे थे, साथ ही थोड़ा टाइम जब भी मिलता था उन्हें तो वो बस बोल पड़ते थे... यहाँ ये यहाँ वो और उसे साबित करने के लिए तो ये देख लो टाइप करके मोबाइल झट से आगे बढ़ा देते थे  ,,आई - फोन जो रखे हुए थे ...जरा सी कुछ बात बात पर गूगल सर्च फट से अपना फ़ोन निकाले और सर्च करना चालू..खैर इसी के साथ यात्रा का पहला दिन समाप्त हुआ किसी तरह ,,!!


 

दूसरा दिन..

सुबह होते ही भुवनेश्वर वाले भाई साब उतर गए.अपने स्टेशन आने पर।। .चुकी यात्रा लम्बी थी तो हमने सोचा यदि थोड़ी चहल -पहल ना हो तो सफर बोझिल हो जायेगा ( ये एक फायदा होता है जब आप फ्लाइट से न जाकर ट्रैन से यात्रा करते है फ्लाइट में एक तो यात्रा का समय काफी छोटा होता है और लोग भी काफी मतलबी , किन्तु ट्रैन का सफर यदि अच्छे लोग मिल जाय तो एक रिश्ता सा बन जाता है )..अब बात करते है दूसरे दिन की ..एक शांत सा लड़का जो कटिहार से ही चढ़ा था ट्रैन में ..बोला हम भैया बैंगलोर से ही इंजीनियरिंग किये अभी कुछ दिन पहले जॉब लगी है पुणे शिफ्ट हो जायेंगे ( तो यूँ हमलोग पहले बातें शुरू किए)..यात्रा लम्बा है कैसे कटेगा..कार्ड(ताश की पत्ती) है हमारे पास यदि आपलोग साथ दीजिये तो समय निकल जायेगा..सभी तैयार हुए .एक लोग बच रहे थे ( यूँ तो कम्पार्टमेंट में ८ लोग थे पर कुछ मोबाइल में तो कोई अपने उसके साथ बिजी थे ) , सभी ने मिलकर उस लड़की को कार्ड खेलने के लिए कहा  ..तो लड़की बोली मुझे तो खेलना भी नहीं आता है .(खैर हमें कौन सा आता था..) फिर हमलोगो के बीच हसी ठहाकों के बीच यात्रा जो के उबाऊ हो रहा था कुछ देर में मजेदार हो गया सभी मिलकर यु चादर बिछाये और दे ताश की पत्ती ये रहा गुलाम , जोकर, बादशाह , टिकरी , पान इसके साथ ही खेल शुरू।। ..मानो ऐसा लग ही नहीं रहा था की हम लोग एक दूसरे को नहीं जानते थे..दिन तो किसी तरह बीत गया..भूख बढ़ रही थी शाम होने को थी .सबने फैसला किया की हमलोग विजयवाड़ा में ही खाएंगे ( बड़ा ही चर्चा सुना था वहां के बिरयानी का पर कभी हिम्मत ना हुई यात्रा के दौरान ट्रैन से उतर कर खाना ला सके )..शाम होने को थी लगभग ठीक ७ बजे जो लड़की हमलोग के साथ बैठ के खेल रही थी उसने अपना लैपटॉप लिया दूसरी सीट में जाकर बैठ गयी..(भगवान जाने क्या कर रही थी, शायद उसे कार्ड के गेम में इंटरेस्ट नहीं था..तो मूवी लगा के बैठी होगी )..मैने चुपके से उसे देखा तो वो बालों को सवार रही थी ..कुछ देर बाद फिर वापस उसी सीट पे आकर बैठ गयी..कुछ ही देर में विजयवाड़ा स्टेशन आने वाली थी..मै और एक भाई साब जो BHEL में कार्यरत थे दोनों ने जिम्मा लिया सबके लिए यहाँ से बिरयानी लाएंगे,,मैंने सब को बोला भाई सब थोड़े थोड़े पैसे दो और फिर कॉन्ट्री के पैसे लिए सबसे..फिर दोनों लोग चल पड़े बिरयानी की पैकिंग करवाने प्लेटफार्म नंबर ७ से ..साथ में हमने ये भी कहा ..यदि गाड़ी निकलने लगी चैन खीच देना .सब मिलके पैसे भर देंगे..हम बाहर निकले और सब लोगो के लिए मस्त सा डिनर का इंतज़ाम किये..बिरयानी, कवाब, कोल्ड ड्रिंक ..फिर सब अनजाने से लोगो की एक फैमिली सी बन गयी.सबने मिलके डिनर किया..और सब लोगो के लिए हमने मॉकटेल बनाया ..३-४ कोल्ड ड्रिंक को एक साथ मिलाकर..सब मस्त खाए पिए., हंसी ठठोली हुई .और सब अपनी अपनी सीट पर सोने चले गए..बहोत देर तक हमें नींद आई नहीं..फिर .हमने हेड फ़ोन लगाया..गानो के साथ हम भी सो गए.और पलक झपकते ही    सुबह हो गयी।। .


तीसरा दिन

ये हमारी यात्रा की आखिरी दिन थी..अब हम सुबह ठीक ९ बजे बैंगलोर पहुंचने वाले थे..सब यही टेंशन में थे आज ऑफिस जाना ..है कैसे कैब को बुलाया जाए,कोई रिलेटिव को फ़ोन किए जा रहा था..कोई यात्रा अच्छी होने की खबर सुना रहा था..सब लोग एक दूसरे को धन्यवाद बोल रहे थे..इसी बीच वो लड़की थोड़ी हिम्मत जुटा कर मेरे से पूछती है..भैया,.ये पता बताएँगे,,? ये भी शायद आप जहां रहते हो वही आस पास है..मैंने पता देखा और मुस्कुराया बोला हां मुझे पता तो है ..लेकिन मुझे भी बहुत ज्यादा आईडिया नहीं है...लेकिन फिर भी मैं आपकी मदत कर दूंगा ..फिर मैं चुप हो गया..हमलोगो में से अधिकतर लोग कृष्णराजपुरम ( बैंगलोर का एक स्टेशन ) में उतरने वाले थे..जैसे ही हमने बैग पैक किया और जाने लगे.उस गुमनाम लड़की ने हिम्मत करते हुए.हमसे कहा.यदि आप बुरा ना माने तो आप अपना नंबर हमें दे सकते हैं..? हमने बोला ठीक है..फिर नंबर दिया हमने..और हमलोग उतर गए,,उस लड़की को यशवंतपुर तक जाना था..उतरने के साथ सबको अलविदा कहा..इस तरह से ये यात्रा एक यादगार लम्हा बन गई..आज की तारीख में वो लड़की मेरी सबसे अच्छी दोस्त है....!!


धन्यवाद,
आनंद

Thursday 28 May 2015

एक अंतिम पत्र आपके नाम....!!

तुझे खुद से ज्यादा सम्मान दिया मैंने,
तुझे खुद से ज्यादा चाहा था मैंने,,
तेरी हर बातों को सर आँखों पे लिया था मैंने,
तेरी हर एक चीज़ को प्राथमिकता दी थी मैंने..

भूल जाऊं जो नाम एक पल के लिए तुम्हारा न होगा..
तुम भी कही अपनी दुनिया बसाओगे फिर से 
पर हमारे बिना तुम्हारा भी गुज़ारा ना होगा..
तेरी आँखों से भी फिर से बरसातें ही होंगी,
जो तेरी आँखों के आगे ये नज़ारा ना होगा,

तेरे कानो में गुन्जेंगे ये अल्फाज़ मेरे,
इतनी आवाज़ देंगे जितना किसी ने तुझे पुकारा ना होगा.
दिल के ज़ज्बातों को कागज़ पर उड़ेलोगे तुम भी,
कांपेगी उंगलियाँ और कोई सहारा ना होगा,
जब भी मिलेगा कोई ख़त तुझे गुमनामियों मे,
ख्याल आएगा मेरा पर वो ख़त हमारा ना होगा.

                                                    धन्यवाद, 
                                                      आनंद 

Monday 2 February 2015

हमारे रिश्ते का नाम क्या है ?

आज चलो हम अपने रिश्ते के बारे में पूछते हैं ..खुद से ..!!
कभी सोचा है तुमने, हमारे रिश्ते का नाम क्या है ?
मोहब्बत,ज़रूरत, ख्वाहिश, जुनून, इश्क़ .या....
वो रिश्ता जो,आसमान का ज़मीन से है
बारिश का सेहरा से है
हक़ीकत का खवाबों से है
दिन का रात से है
ये भी कभी एक दूसरे से मिल नही सकते
लेकिन एक दूसरे के बगैर अधूरे भी हैं
शायद ऐसा ही कुछ रिश्ता
मेरा और तुम्हारा भी है...

आपका,
आनंद 

Thursday 29 January 2015

कितना है मुझ से प्यार लिख दो....!!

कितना है मुझ से प्यार लिख दो....
कटती नहीं ये ज़िन्दगी अब तेरे बिन,
कितना और करूँ इंतज़ार लिख दो.
तरसते रहे हैं बड़ी मुद्दत से,
इस बार अपनी मुहब्बत का इज़हार लिख दो.
दीवाने हो जाएँ जिसे पढ़ के हम,
कुछ ऐसा तुम मेरे यार लिख दो.
ज्यादा नहीं लिख सकते तो मत लिखो तुम,
मुहब्बत भरे लफ्ज़ दो चार लिख दो.
एक बार लिखो मुहब्बत है तुम्हे मुझ से,
फिर यही जुमला बार बार लिख दो....

आपका,
आनंद

Sunday 7 December 2014

दिल की बात दिल तक

जिंदगी ना जाने किस मोड़ पे ला के खड़ी कर दी है। 
एक वो है जिसके लिए हर वक़्त दुआ करता हूँ 
जब भी दर पे उनके आगे खड़ा होकर कुछ मांगने की इक्षा रखता हूँ। 
तो भी सिर्फ उनका ही चेहरा नजर आता है। 
उनकी तरक्की जीवन का हर सुख उन्हें मिले 
जिनकी आश वो लगा के बैठी हैं.. 
क्या किसी को सच्चे मन से निःस्वार्थ भावना से चाहना गलत है। 
"कोई तो बात है जिस पर ख़फ़ा है मुझसे वो , राब्ता रखता है अब वास्ता नहीं रखता...!
फिर भी हृदय में उनकी ही मूरत होगी. और न जाने किस दिन वो  समझने का पर्यत्न करेगी। 
ऐसा न हो समझने की धुन में वो नादान कभी हमें समझ न पाये। 



आपका,
आनंद