Wednesday 3 June 2020

एक आस ..।।

वो सुबह कभी तो आएगी, वो सुबह कभी तो आएगी,
जब हम बंद घरों से होंगे बाहर, वहीं चहल कदमी  फिर सुन आएगी।

फिर सभी स्वतंत्र हो घूमेंगे , ना कोई फिकर ना कोई चिंता होगी,
वो सुबह कभी तो आएगी, वो सुबह कभी तो आएगी।।

यूं तो इस कदर घरों में बैठना , अच्छा है प्रकृति के लिए ,
आवो हवा भी हो रही साफ , स्वच्छंद नदियों के लिए।

पर उनका क्या  ? जो हम पर ही निर्भर होते  रोजी रोटी के लिए,
हम यहां हो रहे खुश,और कहते -  चलो अच्छा है, अपनों के लिए।।

और "वो"  इसलिए चिंतित हैं, कि एक और दिन ना गुजर जाए भूख के मारे।
हां वो दिन ही तो गुज़ार रहे इस आश में की चल कर पहुंच पाए अपनों तक मारे - मारे।।

हां साब ।। जिस मजदूर ने इतने बड़े बड़े शहर बसा दिए , वो आज मजबूर हो गए,
हो गए वो "मजबूर" इस शहर को छोड़ने को, जिसे वो अपना मान बैठा था।

आज "हालात ए मजबूरी "ना होती तो यूं इस कदर यहां वहां ठोकरें ना खाते।
यूं ,इस कदर इनकी मौतें ना होती,उसी सड़क पर जिसे इसने खुद बनाया था।।

हे ईश्वर अब अपनी क्रोध की अग्नि को करो शांत, हम अबोध अब खड़े है सामने जोड़े दोनों  हाथ।।

एक आस के साथ ... कि वो सुबह जल्द ही आएगी , वो सुबह जल्द ही आएगी।।

धन्यवाद्,
आनंद

8 comments:

  1. Perfectly suited for current situation

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  2. काफी प्रासांगिक मौलिक लेखन 💐💐

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    1. बहुत बहुत आभार संग धन्यवाद भाई जी..!!

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  3. Well written Anand. Keep writing

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  4. Beautifully noted..Bahut dino k baad Hindi blog padha,Jo ki bakubi humari wartaman shisthi batata hai.

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद , मैंने तो बस अपने अंदाज में जो आस पास महसूस किया बस उसे शब्दों से एक जगह कर दी :)

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