यूं तो मै इतनी सुबह कभी उठता नहीं, चलो आज आप लोगो को इस कोरोना युग ( जी हां हम इसे कोरोना युग कह सकते है, ये एक ऐसी वैश्विक महामारी है जिसने विश्व के कई देशों को अपना शिकार बना लिया)
यूं तो बैंगलोर में कभी पहले ना हमने इतनी शुद्घ हवा में सांस ली और ना ही रातों के वक़्त कभी गगन में टिमटिमाते तारों को एक टक देखा , हां हमने यहां लगभग एक दशक अब पूरा कर लिया है, हमने बैंगलोर को इस कदर इंन एक दशक में बदलते देखा है ,मानो हम और हमारे जैसे व्यक्ति जो अपनी स्वार्थ वश इस शहर को नष्ट करने में अपना योगदान दिया हो।। बैंगलोर आज दूसरे महानगर की भांति अपने को उस गति से अग्रसित कर रहा है, चाहे बड़े बड़े अपार्टमेंट हो ( क्यों ना हम पेड़ पौधों को जंगलों को उपजाऊ जमीन को हटा कर बनाया हो) , सड़के, मार्केट, हर चीज यहां तीव्र गति से बढ़ी है।
मुझे समझ नहीं आता इस कोरोना युग में प्रकृति का धन्यवाद करूं, या परम पिता परमेश्वर का शुक्रिया अदा करूं, जिन्होंने हम मानव को जब बनाया होगा ,उन्होंने भी कभी ऐसा सोचा ना होगा कि हम मानव अपनी स्वार्थ वश प्रकृति को नष्ट करने पर उतारू हो जाएंगे, कहीं ना कहीं ईश्वर जानते है, की उन्हे ये श्रृष्टि कैसे चलानी है, आज हम मानव पशु की भांति बंद कमरों में इस कदर बैठे है जैसा हमने कभी अपने पशु को अंदर जंजीरों में बांधा था, वहां हमने अपने पशुओं को अपने शौख के लिए बंद किया और यहां हम मौत के डर से अपने को घरों में बंद को मजबूर है।।
जब जब इस संसार में मानव अपने कर्मो की पराकाष्ठा को पार करके एक अलग दुनिया बसाने की कोशिश करेगा ,प्रकृति मानव को अपना शक्ति जरूर दिखाएगी, क्योकी प्रकृति से बलवान कोई भी नहीं।।
अब इस कोरोना युग में कुछ सकारात्मक पहलू की तरफ नजर दौड़ाते है,
हां हमें आज सुबह पक्षियों की कलरव करती आवाजे सुनाई दी , मानो एक स्वर में गाने की कोशिश कर रही हो,
हां हमने अपने व्यस्त समय में से अधिकाश अपने परिवार के साथ बिताया , मानों सब की आंखों में एक उम्मीद हो
हां हमने जीवन को एक सादगी के साथ जीना सीख लिया
मानो की इससे अच्छा समय कभी नहीं हो सकता
हां अब हम घरों में बंद है, नदिया स्वच्छ सी हो गई
हां होती भी क्यों ना अब प्रदूषण जो कम है।
हां अब पक्षिया एक स्वर में गा रही, तितलियां भी इतरा रही
हां गाए और इतराए भी क्यूं ना , अब हम जो बाहर ना है।।
अब इस कोरोना युग को क्या कहूं बस जो हो रहा है , प्रकृति की मंजूरी ही होगी।।
धन्यवाद्,
आनंद
यूं तो बैंगलोर में कभी पहले ना हमने इतनी शुद्घ हवा में सांस ली और ना ही रातों के वक़्त कभी गगन में टिमटिमाते तारों को एक टक देखा , हां हमने यहां लगभग एक दशक अब पूरा कर लिया है, हमने बैंगलोर को इस कदर इंन एक दशक में बदलते देखा है ,मानो हम और हमारे जैसे व्यक्ति जो अपनी स्वार्थ वश इस शहर को नष्ट करने में अपना योगदान दिया हो।। बैंगलोर आज दूसरे महानगर की भांति अपने को उस गति से अग्रसित कर रहा है, चाहे बड़े बड़े अपार्टमेंट हो ( क्यों ना हम पेड़ पौधों को जंगलों को उपजाऊ जमीन को हटा कर बनाया हो) , सड़के, मार्केट, हर चीज यहां तीव्र गति से बढ़ी है।
मुझे समझ नहीं आता इस कोरोना युग में प्रकृति का धन्यवाद करूं, या परम पिता परमेश्वर का शुक्रिया अदा करूं, जिन्होंने हम मानव को जब बनाया होगा ,उन्होंने भी कभी ऐसा सोचा ना होगा कि हम मानव अपनी स्वार्थ वश प्रकृति को नष्ट करने पर उतारू हो जाएंगे, कहीं ना कहीं ईश्वर जानते है, की उन्हे ये श्रृष्टि कैसे चलानी है, आज हम मानव पशु की भांति बंद कमरों में इस कदर बैठे है जैसा हमने कभी अपने पशु को अंदर जंजीरों में बांधा था, वहां हमने अपने पशुओं को अपने शौख के लिए बंद किया और यहां हम मौत के डर से अपने को घरों में बंद को मजबूर है।।
जब जब इस संसार में मानव अपने कर्मो की पराकाष्ठा को पार करके एक अलग दुनिया बसाने की कोशिश करेगा ,प्रकृति मानव को अपना शक्ति जरूर दिखाएगी, क्योकी प्रकृति से बलवान कोई भी नहीं।।
अब इस कोरोना युग में कुछ सकारात्मक पहलू की तरफ नजर दौड़ाते है,
हां हमें आज सुबह पक्षियों की कलरव करती आवाजे सुनाई दी , मानो एक स्वर में गाने की कोशिश कर रही हो,
हां हमने अपने व्यस्त समय में से अधिकाश अपने परिवार के साथ बिताया , मानों सब की आंखों में एक उम्मीद हो
हां हमने जीवन को एक सादगी के साथ जीना सीख लिया
मानो की इससे अच्छा समय कभी नहीं हो सकता
हां अब हम घरों में बंद है, नदिया स्वच्छ सी हो गई
हां होती भी क्यों ना अब प्रदूषण जो कम है।
हां अब पक्षिया एक स्वर में गा रही, तितलियां भी इतरा रही
हां गाए और इतराए भी क्यूं ना , अब हम जो बाहर ना है।।
अब इस कोरोना युग को क्या कहूं बस जो हो रहा है , प्रकृति की मंजूरी ही होगी।।
आनंद
Bitter truth
ReplyDeleteशुक्रिया
Deletethank you
ReplyDeleteशानदार ब्लॉग !!
ReplyDeleteशिव कहते हैं-- विध्वंस में निर्माण छुपा होता है !!
कोरोना का सकारात्मक पहलू जिसका आपने जिक्र किया-उसी बात को साबित करती है !!
धन्यवाद भैया , सत्य कहा आपने ।।
ReplyDeleteभौतिकतावादी युग मे यथार्थ का अनुभव, स्वयं से साक्षात्कार, प्रकृति के बैर, अपनो के लिए समय,सेवाभाव(डॉक्टर् पुलिस सेना सफैमित्र), समाजसेवा का चेहरा सेल्फी के लिए, इन सबका अनुभव इस समय ने कराया है।
ReplyDeleteअतिउत्तम
शुभकामनाओं सहित
आपका
प्रशान्त
धन्यवाद प्रशांत भाई , सौ टके सत्य कहा आपने , इस कोरोना काल ने ऐसे बहुत सरे पहलुओं से हमारा परिचय कराया ।।
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